भारत की मदद से मजबूत होगी मालदीव की अर्थव्यवस्था, विदेश मंत्री ने की सराहना
भारत ने 50 मिलियन डॉलर (423.79 करोड़) के ट्रेजरी बिल के रोलओवर के माध्यम से मालदीव को फाइनेंशियल सपोर्ट दी है. सोमवार को एक बयान में मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला खलील ने फाइनेंशियल सपोर्ट के लिए भारत को धन्यवाद दिया. दरअसल, ट्रेजरी बिल भारतीय सरकार की ओर से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के माध्यम से जारी किया जाने वाला एक अल्पकालिक ऋण है. टी-बिल शून्य-कूपन सिक्योरीटज हैं, जिसका अर्थ है कि ब्याज नहीं देना होता है.
खलील ने एक्स पर पोस्ट कर कहा, ‘मैं 50 मिलियन डॉलर के ट्रेजरी बिल के रोलओवर के माध्यम से मालदीव को महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और भारत सरकार के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूं. समय पर दी गई यह सहायता मालदीव और भारत के बीच घनिष्ठ मैत्रीपूर्ण संबंधों को दर्शाती है और इकॉनोमी के लिए राजकोषीय सुधारों को लागू करने के सरकार के चल रहे प्रयासों को सपोर्ट करेगी.’
मालदीव में भारतीय उच्चायोग ने भी इस मामले पर एक बयान जारी किया. आधिकारिक बयान में कहा गया है कि मालदीव सरकार के अनुरोध पर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर दिए हैं, जोकि एक साल के लिए है. उच्चायोग ने कहा, ‘मार्च 2019 से भारत सरकार एसबीआई द्वारा ऐसे कई ट्रेजरी बिलों का सब्सक्रप्शन की सुविधा प्रदान कर रही है और उसे सालाना, ब्याज मुक्त रूप से मालदीव सरकार को हस्तांतरित कर रही है. यह मालदीव को आपातकालीन वित्तीय सहायता के रूप में एक अनोखी सरकार-से-सरकार व्यवस्था के तहत किया गया है.’
भारत अपना रहा है ‘पड़ोसी पहले’ की पॉलिसी
बयान में कहा गया है कि मालदीव भारत का प्रमुख समुद्री पड़ोसी है और भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति और विजन ‘महासागर’ यानी क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक और समग्र उन्नति में एक महत्वपूर्ण भागीदार है. भारत ने जरूरत के समय मालदीव की सहायता की है और इस ट्रेजरी बिल के सब्सक्रप्शन के साथ साथ ही इस साल की शुरुआत में उसको आवश्यक वस्तुओं का निर्यात करने के लिए विशेष कोटा बढ़ाने का फैसला लिया था.
इस फैसले से मालदीव की मोहम्मद मुइज्जू सरकार और उसके लोगों के लिए मोदी सरकार किस तरह से उसे अहमियत दे रही है उसका पता चलता है. हालांकि मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू चीन समर्थक रहे हैं और उन्होंने सत्ता में आते ही इंडिया आउट की नीति अपनाई थी. साथ ही साथ भारत से समझौतों को लेकर अपने देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा बताया था.